प्रत्येक देश की आधी आबादी महिलाओं पर आधारित होती है। महिलाओं के बारे में विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण पाए जाते हैं। एक गुट का यह मानना है कि महिलाएं न्यूनतम अधिकारों की स्वामी हैं क्योंकि वे दूसरे नंबर की नागरिक हैं इसलिए उन्हें सामाजिक गतिविधियों से वंचित रहना चाहिए। इस विचारधारा के मुक़ाबले में एक गुट एसा भी है जिसका मानना है महिलाओं के अधिकारों को पूरे इतिहास में अनदेखा किया गया है इसलिए इस अत्याचार के बदले उनको समान अधिकार दिये जाएं बल्कि इससे बढ़कर महिलाओं को पुरूषों पर वरीयता दी जानी चाहिए। इसी बीच महिलाओं के बारे में इस्लाम ने बहुत ही संतुलित विचारधारा प्रस्तुत की है। इस्लाम, महिलाओं के लिए मानवीय अधिकारों की बात करता है। अतीत में कुछ एसी अतिवादी विचारधाराएं प्रचलित थीं जिनके अन्तर्गत महिला को दूसरे नंबर का नागरिक माना जाता था। इस अतिवादी विचारधारा में उसे मानव की श्रेणी में नहीं रखा गया है। यही कारण है कि इस विचारधारा में महिलाओं को मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया है इसलिए वह मानवीय उच्चता को प्राप्त नहीं कर सकती। उदाहरण स्वरूप यूनान के प्रचानी दर्शनशास्त्री अरस्तू, महिला को अधूरी सृष्टि मानते हैं। प्राचीन काल में विश्व के बहुत से क्षेत्रों में यह विचारधारा प्रचलित रही है। यह विचार आज भी संसार के कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है। संसार के कुछ क्षेत्रों में लोगों का यह मानना है कि महिलाओं को सामाजिक या राजनैतिक क्षेत्रों में गतविधियां करने का कोई अधिकार नहीं है। बहुत से समाजशास्त्रियों का कहना है कि कुछ अरब देशों में महिलाओं को वैसा ही स्थान प्राप्त है जैसा कि दक्षिणी अफ़्रीका की वर्णभेदी व्यवस्था में अश्वेतों को हासिल था। इस भेदभाव पूर्ण व्यवस्था में अश्वेतों को हर क्षेत्र में असमानता का सामना था। वर्तमान समय में भी तालेबान, आईएसआईएल, बोको हराम और इसी प्रकार के आतंकवादी संगठन/ अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, सीरिया और नाइजीरिया में मानवाधिकारों विशेषकर महिलाओं के अधिकारों का खुलकर हनन कर रहे हैं।
इस अतिवादी विचारधारा के मुक़ाबले में बीसवीं शताब्दी के आरंभ में पश्चिम में कुछ लोगों ने महिलाओं के अधिकारों को उन्हें दिलाने का बीड़ा उठाया। इस प्रकार महिलाओं के अधिकारों के समर्थन में फ़ेमिनिज़्म या नारीवाद नामक विचारधारा सामने आई। इस विचारधारा में महिलाओं के अधिकारों पर विशेष रूप से बल दिया गया है साथ ही लैंगिक समानता, लैंगिक स्वतंत्रता, गर्भपात के वैध होने और महिलाओं के पारिवारिक बंधनों से दूर रहने पर बल दिया गया है। नारीवाद विचारधारा में अति से जहां महिलाओं की कुछ समस्याओं का समाधान हुआ वहीं पर इसने समाज में महिलाओं के लिए बहुत सी अनंत समस्याओं को भी जन्म दिया।
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